Rishta Kab Toot Jata Hai
बडे दीनो से कुछ यादे,
जेहन पार दस्तक दैती हे,
दउड कर पहूचता हू मै पर,
चेहरा कोइ नज़र नही अता है|
जोडती है जो मुजे सब से वो डोर कभी नजर आती नही,
यही है वो जीस रिश्ता हम कहते है,
कब किससे कैसे जुड़ जाता है नहीं पता,
बिखर के टूट कब जाय ये भी नहीं किसिको पता,
सोचता हूं मै ये अकसर लेकिन,
समज मे नहीं आता है,
की रिश्ता कब टूट जाता है|
चलते चलते जब परछाई से मन घबराता है,
जीस बिस्तर में सिमटे रहेते थे कभी,
वही बिस्तर छोटा पड़ जाता हैं|
यादें थी कबि दरमियां,
अब तेरी मेरी चीजों को बाटना पड़ जाता है,
घंटो बाते होति थी,
अब सामना हो जाय तो दिल किनारा कर लेता है,
सायद ऐसा ही होता है,
जब रिश्होता कोई टूट जाता है,
दोस्त ऐसे भी थे की परिवार तुम्हीमे नजर आता था,
न मिलते कभि हम,
तो दीन पूरा नहीं हो पता था,
रिश्ता अपनी दोस्तीका तो हर दीवार से ऊँचा था,
या फ़क़त समय काटनेका ये एक जरिया था,
फोन पर आज भी मै तेरा कोल ढूंढता हु लेकिन,
रिसेंटली डायलड् नंबर जब,
सिर्फ़ इक कोंटेक्ट बन कर रह जाता है |
हा शायद शायद
रिश्ता तब टूट जाता है,
आंखें नम हो जाए जब ऐसे,
की तसवीर का हर चहेरा धुन्धला पड जाता है,
याकीनन,
रिशता तब टूट जाता है,
रिशता तब टूट जाता है,